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Showing posts from August 30, 2017

DISTANCE FROM ONE BELT ONE FROM INDIA HINDI ESSAY

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एशियाई परिदृश्य में तीन वर्षों से आर्थिक संयोजन की जो योजना वन बेल्ट वन रोड़ बनाई जा रही थी, वह 14 मई 2017 को साकार हो गई। इस सम्मेलन में लगभग 130 देशों ने भाग लिया, जिसमें से लगभग 68 देश, 900 अरब डॉलर के आर्थिक गलियारे का हिस्सा हैं। भारत ने इस आयोजन का बहिष्कार किया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में तीन कारण बताए हैं। वन बेल्ट, वन रोड़ योजना, एक तरह से चीन-पाकिस्तान का आर्थिक गलियारा है। इस योजना में गिलगित-बलातिस्तान क्षेत्र को शामिल किये जाने से भारत की एकता और अखण्डता को क्षति पहुंचती है। इस योजना में चीन के नवउपनिवेशवाद की बू आ रही है। यह योजना शामिल देशों पर अनावश्यक कर्जे का बोझ लाद सकती है। आगे चलकर इस योजना के सदस्य देशों में कर्ज के चलते आर्थिक विषमता आ सकती है। चीन का एजेंडा स्पष्ट नहीं है। भारत को लगता है कि यह मात्र आर्थिक योजना नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से चीन, इस क्षेत्र पर अपना राजनैतिक प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है। भारत की ये तीनों आशंकाएं बेबुनियाद नहीं हैं। लेकिन पर्यवेक्षक की तरह इस सम्मेलन में भाग लेने से भारत के लिए आगे का रास्ता खुला रहता। माना कि

RIGHT TO PRIVACY

भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को कई प्रकार के मौलिक अधिकार दे रखे हैं। लेकिन शत-प्रतिशत इन्हें लागू नहीं किया जाता है। वर्तमान में निजता के अधिकार को लेकर चल रही चर्चाओं के लिए भी नागरिकों के मन में यही शंका व्याप्त है कि क्या इसे मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जा सकेगा? अगर ऐसा होता है, तो क्या इसे शत-प्रतिशत लागू किया जा सकेगा। ऐसा मौलिक अधिकार मिलने के बाद क्या नागरिक सरकार की निगरानी से बच सकेंगे? ऐसे अनेक प्रश्न लोगों के मन में हैं। दरअसल निजता के अधिकार का वर्णन संविधान में नहीं किया गया है। परन्तु अगर केवल संविधान के आधार पर ही निजता के अधिकार को देखा जाना है, तो मनमानी करने के विरूद्ध अधिकार एवं प्रेस की स्वतंत्रता जैसे विषय भी समाप्त हो जाने चाहिए। किसी निजी संस्था को अपनी मर्जी से अपने बारे में सूचना देने और सरकार द्वारा नागरिकों को सूचनाएं प्रदान करने की अनिवार्यता में अंतर है। अतः निजता के अधिकार के बारे में निर्णय लेने के लिए स्वयं एपेक्स कोर्ट को भी अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। क्या हमारा न्यायालय आज सूचना तंत्र के युग में 1963 और 1973 जैसा सशक्त निर्णय ले सकेगा, जब

GST IN HINDI

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वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से मेक इन इंडिया को कैसे सफल बनाया जाए। एक जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर लागू हो जाएगा। इसके अंतर्गत अधिकतर औद्योगिक उत्पादों को 18 प्रतिशत वाली कर श्रेणी में रखा गया है। वर्तमान में एक निर्माता 28-30 प्रतिशत कर देता है, जो घटकर 18 प्रतिशत हो जाएगा। वस्तु एवं सेवा कर से निर्माताओं को न केवल करों में कमी का लाभ मिलेगा, बल्कि उन्हें और भी अलग तरह के फायदे होंगे। वस्तु एवं सेवा कर वर्तमान में लगाए जाने वाले सेवा कर, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले वैट एवं प्रवेश शुल्क जैसे अनेक केन्द्रीय एवं राज्य शुल्कों की जगह लेगा। इससे केन्द्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर विभिन्न अनुपालन तंत्र के अंतर्गत लगाए जाने वाले करों से मुक्ति मिल जाएगी।वस्तु एवं सेवा कर से अभी तक लगाए जाने वाले करों के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। उदाहरण के लिए, अभी एक निर्माता 100 रुपये की एक कमीज पर 20 प्रतिशत उत्पाद शुल्क देता है। फिलहाल राज्य सरकार 120 रुपये पर वैट लेती है। वस्तु एवं सेवा कर से यह समस्या हल हो जाएगी। यह कर वस्तु के संपूर्ण मूल्य पर न लगकर केवल अतिर