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Showing posts from September, 2017

स्वास्थ्य सेवाओं का हो स्वास्थ्य परीक्षण( HEALTH CHECK UP OF HEALTH SERVICE)

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      हाल ही में गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में हुई दुर्घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों की चिकित्सा व्यवस्था बहुत लचर है। इसके कारण इन क्षेत्रों का सारा बोझ आसपास के जिला अस्पतालों पर आ पड़ता है। ये अस्पताल इतना बोझ उठाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं रखते, इसलिए गोरखपुर जैसी दुर्घटनाएं होती हैं। इस व्यवस्था की चरमराती स्थिति का अंदाज हमें लेखा एवं नियंत्रक परीक्षक की प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य संबंधी मार्च 2016 की रिपोर्ट से लग सकता है।रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग राज्यों में स्वास्थ्य संबंधी निधि पूरी तरह से काम में नहीं ली जाती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की कमी, आवश्यक दवाओं की कमी, टूटे-फूटे उपकरण एवं डॉक्टरों की कमी के कारण मरीजों का ईलाज असंभव सा हो जाता है। उत्तरप्रदेश के दौरे के दौरान लेखा एवं नियंत्रक परीक्षक ने पाया कि लगभग 50% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कोई डॉक्टर नहीं है।बिहार, झारखंड, सिक्किम, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जरूरत की तुलना में स्वास्थ्य केंद्र बहुत ही कम हैं। इ

स्वच्छ भारत अभियान के तीन वर्ष( clean india three years essay in hindi)

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2 अक्टूबर, 2014 से स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत हुई थी। इस मिशन को चलते हुए लगभग तीन वर्षों का समय पूरा होने वाला है। शहरी विकास मंत्रालय के साथ स्वच्छ जल एवं स्वच्छता विभागों ने इस कार्यक्रम को राज्य स्तर पर सुचारू रूप से चलाने का प्रयत्न किया है। परन्तु प्रधानमंत्री द्वारा इस मिशन को जिला एवं ब्लॉक स्तर पर केन्द्रित करने की सोच ही इसकी सफलता की कुंजी सिद्ध हो रही है और होगी भी। इस अभियान की कुछ खास उपलब्धियां निम्न हैं। अभी तक पाँच राज्य, 149 जिले और08 लाख गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छता क्षेत्र में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शहरी वार्डों में लगभग 50 प्रतिशत में ठोस कचरा एकत्रीकरण का काम हो रहा है। शहरी क्षेत्रों में 20,000 एवं ग्रामीण क्षेत्रों में एक लाख स्वच्छाग्रही कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग प्रसाधन का प्रतिशत 37 से बढ़कर 91 हो गया है। खुले में शौच की प्रथा का समाप्त करने के लिए अनेक निगरानी समितियां बनाई गई हैं। इनका काम घरों में बनाए गए शौचालयों की गिनती करना नहीं, बल्कि खुले में शौच क