Posts

स्वास्थ्य सेवाओं का हो स्वास्थ्य परीक्षण( HEALTH CHECK UP OF HEALTH SERVICE)

Image
      हाल ही में गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में हुई दुर्घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों की चिकित्सा व्यवस्था बहुत लचर है। इसके कारण इन क्षेत्रों का सारा बोझ आसपास के जिला अस्पतालों पर आ पड़ता है। ये अस्पताल इतना बोझ उठाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं रखते, इसलिए गोरखपुर जैसी दुर्घटनाएं होती हैं। इस व्यवस्था की चरमराती स्थिति का अंदाज हमें लेखा एवं नियंत्रक परीक्षक की प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य संबंधी मार्च 2016 की रिपोर्ट से लग सकता है।रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग राज्यों में स्वास्थ्य संबंधी निधि पूरी तरह से काम में नहीं ली जाती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की कमी, आवश्यक दवाओं की कमी, टूटे-फूटे उपकरण एवं डॉक्टरों की कमी के कारण मरीजों का ईलाज असंभव सा हो जाता है। उत्तरप्रदेश के दौरे के दौरान लेखा एवं नियंत्रक परीक्षक ने पाया कि लगभग 50% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कोई डॉक्टर नहीं है।बिहार, झारखंड, सिक्किम, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जरूरत की तुलना में स्वास्थ्य केंद्र बहुत ही कम हैं। इ

स्वच्छ भारत अभियान के तीन वर्ष( clean india three years essay in hindi)

Image
2 अक्टूबर, 2014 से स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत हुई थी। इस मिशन को चलते हुए लगभग तीन वर्षों का समय पूरा होने वाला है। शहरी विकास मंत्रालय के साथ स्वच्छ जल एवं स्वच्छता विभागों ने इस कार्यक्रम को राज्य स्तर पर सुचारू रूप से चलाने का प्रयत्न किया है। परन्तु प्रधानमंत्री द्वारा इस मिशन को जिला एवं ब्लॉक स्तर पर केन्द्रित करने की सोच ही इसकी सफलता की कुंजी सिद्ध हो रही है और होगी भी। इस अभियान की कुछ खास उपलब्धियां निम्न हैं। अभी तक पाँच राज्य, 149 जिले और08 लाख गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छता क्षेत्र में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शहरी वार्डों में लगभग 50 प्रतिशत में ठोस कचरा एकत्रीकरण का काम हो रहा है। शहरी क्षेत्रों में 20,000 एवं ग्रामीण क्षेत्रों में एक लाख स्वच्छाग्रही कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग प्रसाधन का प्रतिशत 37 से बढ़कर 91 हो गया है। खुले में शौच की प्रथा का समाप्त करने के लिए अनेक निगरानी समितियां बनाई गई हैं। इनका काम घरों में बनाए गए शौचालयों की गिनती करना नहीं, बल्कि खुले में शौच क

DISTANCE FROM ONE BELT ONE FROM INDIA HINDI ESSAY

Image
एशियाई परिदृश्य में तीन वर्षों से आर्थिक संयोजन की जो योजना वन बेल्ट वन रोड़ बनाई जा रही थी, वह 14 मई 2017 को साकार हो गई। इस सम्मेलन में लगभग 130 देशों ने भाग लिया, जिसमें से लगभग 68 देश, 900 अरब डॉलर के आर्थिक गलियारे का हिस्सा हैं। भारत ने इस आयोजन का बहिष्कार किया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में तीन कारण बताए हैं। वन बेल्ट, वन रोड़ योजना, एक तरह से चीन-पाकिस्तान का आर्थिक गलियारा है। इस योजना में गिलगित-बलातिस्तान क्षेत्र को शामिल किये जाने से भारत की एकता और अखण्डता को क्षति पहुंचती है। इस योजना में चीन के नवउपनिवेशवाद की बू आ रही है। यह योजना शामिल देशों पर अनावश्यक कर्जे का बोझ लाद सकती है। आगे चलकर इस योजना के सदस्य देशों में कर्ज के चलते आर्थिक विषमता आ सकती है। चीन का एजेंडा स्पष्ट नहीं है। भारत को लगता है कि यह मात्र आर्थिक योजना नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से चीन, इस क्षेत्र पर अपना राजनैतिक प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है। भारत की ये तीनों आशंकाएं बेबुनियाद नहीं हैं। लेकिन पर्यवेक्षक की तरह इस सम्मेलन में भाग लेने से भारत के लिए आगे का रास्ता खुला रहता। माना कि

RIGHT TO PRIVACY

भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को कई प्रकार के मौलिक अधिकार दे रखे हैं। लेकिन शत-प्रतिशत इन्हें लागू नहीं किया जाता है। वर्तमान में निजता के अधिकार को लेकर चल रही चर्चाओं के लिए भी नागरिकों के मन में यही शंका व्याप्त है कि क्या इसे मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जा सकेगा? अगर ऐसा होता है, तो क्या इसे शत-प्रतिशत लागू किया जा सकेगा। ऐसा मौलिक अधिकार मिलने के बाद क्या नागरिक सरकार की निगरानी से बच सकेंगे? ऐसे अनेक प्रश्न लोगों के मन में हैं। दरअसल निजता के अधिकार का वर्णन संविधान में नहीं किया गया है। परन्तु अगर केवल संविधान के आधार पर ही निजता के अधिकार को देखा जाना है, तो मनमानी करने के विरूद्ध अधिकार एवं प्रेस की स्वतंत्रता जैसे विषय भी समाप्त हो जाने चाहिए। किसी निजी संस्था को अपनी मर्जी से अपने बारे में सूचना देने और सरकार द्वारा नागरिकों को सूचनाएं प्रदान करने की अनिवार्यता में अंतर है। अतः निजता के अधिकार के बारे में निर्णय लेने के लिए स्वयं एपेक्स कोर्ट को भी अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। क्या हमारा न्यायालय आज सूचना तंत्र के युग में 1963 और 1973 जैसा सशक्त निर्णय ले सकेगा, जब

GST IN HINDI

Image
वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से मेक इन इंडिया को कैसे सफल बनाया जाए। एक जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर लागू हो जाएगा। इसके अंतर्गत अधिकतर औद्योगिक उत्पादों को 18 प्रतिशत वाली कर श्रेणी में रखा गया है। वर्तमान में एक निर्माता 28-30 प्रतिशत कर देता है, जो घटकर 18 प्रतिशत हो जाएगा। वस्तु एवं सेवा कर से निर्माताओं को न केवल करों में कमी का लाभ मिलेगा, बल्कि उन्हें और भी अलग तरह के फायदे होंगे। वस्तु एवं सेवा कर वर्तमान में लगाए जाने वाले सेवा कर, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले वैट एवं प्रवेश शुल्क जैसे अनेक केन्द्रीय एवं राज्य शुल्कों की जगह लेगा। इससे केन्द्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर विभिन्न अनुपालन तंत्र के अंतर्गत लगाए जाने वाले करों से मुक्ति मिल जाएगी।वस्तु एवं सेवा कर से अभी तक लगाए जाने वाले करों के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। उदाहरण के लिए, अभी एक निर्माता 100 रुपये की एक कमीज पर 20 प्रतिशत उत्पाद शुल्क देता है। फिलहाल राज्य सरकार 120 रुपये पर वैट लेती है। वस्तु एवं सेवा कर से यह समस्या हल हो जाएगी। यह कर वस्तु के संपूर्ण मूल्य पर न लगकर केवल अतिर